पटाखों का इतिहास: शिवकाशी दक्षिण भारत में तमिलनाडु का एक शहर है, जो चेन्नई से लगभग 500 किमी दूर है, जहां देश के कुल उत्पादन का 80 प्रतिशत उत्पादन होता है।
पटाखों की उत्पत्ति: क्या आप जानते हैं कि पटाखों की उत्पत्ति कब और कहां से हुई और यह भारत में कैसे पहुंचा? इतिहासकारों का कहना है कि चीन में पटाखों की शुरुआत छठी शताब्दी में हुई थी। इसकी खोज के पीछे एक दुर्घटना को कारण बताया जा रहा है। चीन में एक रसोइए ने जब आग में सॉल्टपीटर यानी पोटैशियम नाइट्रेट फेंका तो आग की लपटें निकलीं और फिर उसमें कोयला और सल्फर मिलाने से धमाका हो गया. यहीं से इसकी खोज हुई थी।
13वीं सदी में चीन से आतिशबाजी निकली। वहीं, भारत में पटाखों का इतिहास 15वीं सदी से भी पुराना बताया जाता है। हालांकि आपको बता दें कि चीन दुनिया में पटाखों का सबसे बड़ा उत्पादक देश है। इसके बाद यानी दूसरे नंबर पर भारत का स्थान आता है। पटाखों के ज्यादातर पैकेटों में आपने शिवकाशी को छपा हुआ देखा होगा। क्या आप जानते हैं ऐसा क्यों है?
वास्तव में शिवकाशी दक्षिण भारत में तमिलनाडु का एक शहर है, जो चेन्नई से लगभग 500 किमी दूर है। देश में सबसे ज्यादा पटाखे इसी शहर में बनते हैं। शिवकाशी में करीब 800 पटाखा फैक्ट्रियां हैं, जहां देश के कुल उत्पादन का 80 फीसदी उत्पादन होता है। यहां पटाखा उद्योग से लाखों लोगों की आजीविका जुड़ी हुई है।
शिवकाशी के नादर ब्रदर्स पटाखा उद्योग में एक बड़ा नाम है। शनमुगम नादर और अय्या नादर ने 1922 में कोलकाता से मैच बनाने की कला सीखी और फिर अपने गृहनगर शिवकाशी लौट आए। यहां दोनों ने सबसे पहले माचिस की डिब्बी की फैक्ट्री लगाई। 1926 में 4 साल बाद दोनों भाई अलग हो गए और फिर पटाखों का निर्माण शुरू किया।
आज दोनों भाइयों की कंपनी श्री कालीश्वरी फायर वर्क्स और स्टैंडर्ड फायर वर्क्स के नाम से देश में दो सबसे बड़े पटाखा निर्माता हैं। यहां बने पटाखों का निर्यात दूसरे देशों में भी किया जाता है। भारत में पटाखों का कारोबार 5000 करोड़ रुपये से ज्यादा का बताया जाता है।