हर महीने दो चतुर्थी तिथियां पड़ती हैं, दोनों तिथियां गजानन गणपति को समर्पित हैं। कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को संकष्टी चतुर्थी तथा शुक्ल पक्ष की तिथि को विनायक चतुर्थी कहते हैं।
संकष्टी चतुर्थी
संकष्टी चतुर्थी 2021: साल 2021 खत्म होने को है, ऐसे में इस साल की आखिरी संकष्टी चतुर्थी का व्रत भी भक्तों के लिए आ गया है. आपको बता दें कि मार्गशीर्ष पूर्णिमा के बाद से पौष का महीना शुरू हो गया है। पौष मास की चतुर्थी तिथि को श्रद्धा और आस्था के साथ भक्त संकष्टी चतुर्थी 2021 मनाएंगे। संकष्टी चतुर्थी भगवान गणेश को समर्पित एक बहुत ही पुण्य दिन है।
इस दिन, भक्त संकटों को दूर करने के लिए पूरे अनुष्ठान के साथ श्री गणेश की पूजा करते हैं। कहा जाता है कि इस दिन अगर भगवान से मन्नत पूरी करने के लिए कहा जाए तो उन्हें वह मिल जाती है। इस बार पौष मास में चतुर्थी व्रत 22 दिसंबर को रखा जाएगा. संकष्टी चतुर्थी व्रत 2021 इस साल का आखिरी व्रत है। खास बात यह है कि संकष्टी चतुर्थी पर चंद्रमा की पूजा का भी विशेष महत्व (चंद्रमा पूजा) है। आइए जानते हैं संकष्टी चतुर्थी के व्रत की तिथि, पूजा का समय और चंद्रमा के उदय का समय।
संकष्टी चतुर्थी 2021 तिथि और पूजा मुहूर्त
पौष मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि 22 दिसंबर बुधवार शाम 04:52 बजे से प्रारंभ होगी. जबकि यह तिथि गुरुवार 23 दिसंबर को शाम 06:27 बजे समाप्त होगी. संकष्टी चतुर्थी तिथि (Sankashti Chaturthi 2021) में तिथि में ही चंद्रमा की पूजा का महत्व है, इसलिए 22 दिसंबर को चंद्रोदय होगा और इस दिन यह पूजा की जाएगी. इस दिन आप सुबह से दोपहर 12 बजे तक भगवान गणेश की पूजा कर सकते हैं।
संकष्टी चतुर्थी चंद्रोदय का समय संकष्टी चतुर्थी 2021
22 दिसंबर को होने वाली संकष्टी चतुर्थी में चंद्रमा 08:12 बजे उदय होगा। इन दिनों चंद्र देव के दर्शन करना अत्यंत पवित्र माना जाता है। कहा जाता है कि यह व्रत बिना चंद्र दर्शन के अधूरा रहता है। इस दिन चंद्रमा को जल चढ़ाकर ही पारण किया जाता है। संकष्टी चतुर्थी का व्रत करने से गणेश जी की विशेष कृपा प्राप्त होती है और सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं. बी
संकष्टी चतुर्थी पूजा विधि
संकष्टी चतुर्थी के दिन प्रातः सूर्योदय से पूर्व उठकर स्नान कर स्वच्छ व धुले वस्त्र धारण करें। कहा जाता है कि इस दिन अगर आप लाल रंग के कपड़े पहनते हैं तो यह बहुत शुभ होता है। इसके बाद गणपति की पूजा करें और इस समय अपना मुख पूर्व या उत्तर दिशा की ओर रखें। गणपति को फल और फूल चढ़ाएं। पूजा में तिल, गुड़, लड्डू, फूल और तांबे के कलश में जल, धूप, चंदन, केला या नारियल प्रसाद के रूप में रखें.
पूरे दिन भगवान का स्मरण करते हुए व्रत रखें और फिर शाम को चंद्रमा के उदय होने से पहले गणेश जी की पूजा करें और संकष्टी व्रत कथा का पाठ करें, फिर चंद्रमा को जल अर्पित करके व्रत पूरा करें।