
पटना, 14 नवंबर: बिहार विधानसभा चुनाव 2025 के परिणाम केवल संख्याएँ नहीं हैं, बल्कि यह बिहार की राजनीति के भविष्य की एक स्पष्ट रूपरेखा हैं। दोपहर तक के निर्णायक रुझानों ने यह साबित कर दिया है कि राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (NDA) ने राज्य में एकतरफा जीत हासिल करते हुए 200 के जादुई आंकड़े को भी पार कर लिया है, और वह 208 सीटों पर प्रचंड बढ़त बनाए हुए है। यह परिणाम न केवल मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को लगातार चौथे कार्यकाल की गारंटी देता है, बल्कि यह भी स्थापित करता है कि जनता का भरोसा ‘विकास और सुशासन’ पर अडिग है।
केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने चुनाव से पहले NDA के लिए 160+ सीटों का अनुमान लगाया था, लेकिन रुझानों ने उस अनुमान को भी कहीं पीछे छोड़ दिया है। इस जीत ने NDA की संयुक्त शक्ति, विशेष रूप से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और नीतीश कुमार की ‘डबल इंजन’ की अपील को मजबूत किया है। वहीं, विपक्षी महागठबंधन को एक अपमानजनक और ऐतिहासिक हार का सामना करना पड़ा है, जिसकी बढ़त दहाई के अंकों तक सिमट गई है।
आइए, इस महाविजय के आंकड़ों का विश्लेषण करें और उन 5 सबसे बड़े निर्णायक कारकों पर गहराई से नज़र डालें, जिन्होंने बिहार की राजनीति को हमेशा के लिए बदल दिया है।
खंड 1: संख्याएँ बोलती हैं – NDA की महाविजय का गणित
NDA की 208 सीटों की बढ़त को ध्यान से देखने पर गठबंधन के भीतर के शक्ति संतुलन में एक बड़ा बदलाव दिखता है।
पार्टी सीटों पर बढ़त (लगभग) विश्लेषण
भारतीय जनता पार्टी (BJP) 89 NDA में सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी, जो केंद्र सरकार के एजेंडे और PM मोदी की अपील को दर्शाती है।
जनता दल यूनाइटेड (JDU) 79 मुख्यमंत्री पद पर बने रहने के लिए पर्याप्त संख्या, लेकिन गठबंधन में छोटे भाई की भूमिका स्वीकार करनी होगी।
लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) (LJP(RV)) 21 चिराग पासवान का चौंकाने वाला उदय। यह दिखाता है कि उन्होंने MGB के वोट काटने के साथ-साथ अपनी पार्टी के लिए भी मजबूत जगह बनाई।
हिंदुस्तानी अवाम मोर्चा (HAM) 4 जीतन राम मांझी का समर्थन आधार सुरक्षित।
NDA का यह प्रदर्शन स्पष्ट रूप से बताता है कि मतदाताओं ने स्थिरता, कानून-व्यवस्था और सरकारी कल्याणकारी योजनाओं को सबसे ऊपर रखा।
खंड 2: चिराग पासवान का चौंकाने वाला ’21 सीटों’ का उदय
इस चुनाव में सबसे बड़ा ‘एक्स-फैक्टर’ चिराग पासवान की पार्टी LJP (रामविलास) रही। चिराग पासवान ने जहाँ 2020 में JDU को नुकसान पहुँचाया था, वहीं 2025 में उनकी पार्टी ने 21 सीटों पर बढ़त बनाकर न केवल खुद को एक प्रमुख राजनीतिक शक्ति के रूप में स्थापित किया, बल्कि यह सुनिश्चित किया कि महागठबंधन की हार की गति और तेज हो।
दोहरी मार की रणनीति: चिराग पासवान ने NDA के विरुद्ध जाकर चुनाव नहीं लड़ा, बल्कि उनका सीधा हमला महागठबंधन, विशेषकर RJD पर रहा। उन्होंने RJD के अति-पिछड़ा वर्ग (EBC) और दलित वोटबैंक में सेंध लगाई, जिसने महागठबंधन की वापसी की संभावनाओं को पूरी तरह से समाप्त कर दिया।
युवा और दलितों की अपील: चिराग पासवान की ‘बिहार फर्स्ट, बिहारी फर्स्ट’ की अपील और उनके युवा नेतृत्व ने दलित और युवा मतदाताओं के एक बड़े हिस्से को आकर्षित किया, जो RJD के पारंपरिक कोर वोटबैंक में सेंध लगाने में सफल रहे। उनकी 21 सीटों की बढ़त NDA की कुल टैली में एक महत्वपूर्ण योगदान है।
खंड 3: महागठबंधन का पतन: ऐतिहासिक पराजय के तीन स्तंभ
NDA की महाविजय के सामने, विपक्षी महागठबंधन पूरी तरह से बिखर गया। उसका प्रदर्शन इतना निराशाजनक रहा कि गठबंधन दहाई के अंकों तक सिमट गया।
उपखंड 3.1: कांग्रेस: कमजोर कड़ी से राजनीतिक बोझ
महागठबंधन में कांग्रेस पार्टी की भूमिका सबसे दुखद रही। 60 से अधिक सीटों पर चुनाव लड़ रही कांग्रेस केवल 4-5 सीटों पर ही संघर्ष कर पाई, जिससे उसे ‘पंजा’ (पाँच सीटें) भी मुश्किल से मिला।
खराब स्ट्राइक रेट: कांग्रेस का बेहद खराब स्ट्राइक रेट महागठबंधन की हार का एक मुख्य कारण बना। पार्टी ने उन सीटों पर भी जीत हासिल नहीं की, जहाँ उसे RJD के कोर वोटबैंक का समर्थन मिलने की उम्मीद थी।
सीटों की अत्यधिक मांग: कांग्रेस ने अपनी वास्तविक ताकत से कहीं ज़्यादा सीटों पर दावा किया, जिसके कारण RJD को कई मजबूत सीटों पर समझौता करना पड़ा, जिसने पूरे गठबंधन की रणनीति को कमजोर किया। वरिष्ठ कांग्रेस नेता शशि थरूर ने भी इस प्रदर्शन को ‘चिंताजनक’ बताया है और पार्टी में आत्मनिरीक्षण की जरूरत पर जोर दिया है।
उपखंड 3.2: RJD की ‘आधी’ बढ़त और तेजस्वी का संघर्ष
मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार तेजस्वी यादव के नेतृत्व वाली RJD की बढ़त आधी रह गई। तेजस्वी यादव ने पूरे राज्य में बेरोजगारी और रोजगार के वादे पर व्यापक प्रचार किया, लेकिन यह जमीनी हकीकत के सामने टिक नहीं पाया।
युवा अपील बनाम जमीनी संगठन: तेजस्वी की सभाओं में भीड़ जुटी, लेकिन वह भीड़ वोटों में तब्दील नहीं हो पाई। कारण: कमजोर बूथ प्रबंधन और संगठनात्मक ढाँचे में कमी।
‘जंगलराज’ का डर: RJD के शासनकाल से जुड़े ‘जंगलराज’ के नैरेटिव का डर, जिसे NDA ने आक्रामक तरीके से भुनाया, महिला और अगड़ी जाति के मतदाताओं को RJD से दूर ले गया। तेजस्वी यादव खुद भी राघोपुर सीट पर कांटे की टक्कर के बाद ही मामूली बढ़त हासिल कर पाए।
उपखंड 3.3: VIP और अन्य दलों का ‘साफ’ होना
मुकेश सहनी की विकासशील इंसान पार्टी (VIP) का प्रदर्शन भी बेहद निराशाजनक रहा और वह लगभग ‘साफ’ होती दिखी। VIP जैसी छोटी पार्टियों का वोट ट्रांसफर न हो पाना और उनका खराब प्रदर्शन महागठबंधन को पूरी तरह से डुबो गया।
खंड 4: निर्णायक कारक 1: ‘साइलेंट वोटर’ और सुशासन का जादू
NDA की इस महाविजय का सबसे बड़ा निर्णायक कारक बिहार की महिला मतदाता रहीं, जो ‘साइलेंट वोटर’ बनकर उभरीं।
रिकॉर्ड महिला मतदान: इस चुनाव में 71.6% महिला मतदान दर्ज हुआ, जो पुरुष मतदान (62.8%) से 8.8% अधिक था। यह विशाल अंतर स्पष्ट रूप से NDA के पक्ष में गया।
नीतीश के ‘विकास-समर्थक’ कार्यक्रम: महिला मतदाताओं ने नीतीश कुमार के कार्यक्रमों पर भरोसा जताया:
शराबबंदी: यह महिलाओं के लिए सुरक्षा और पारिवारिक शांति का मुद्दा था।
जीविका दीदी नेटवर्क: 1.4 करोड़ महिलाओं का यह संगठन NDA के लिए एक अदृश्य प्रचार तंत्र बन गया।
साइकिल योजना और पंचायती राज में आरक्षण: इन कदमों ने महिलाओं को सशक्तिकरण और राजनीतिक हिस्सेदारी दी।
मंत्रियों की जीत: 29 में से 28 मंत्रियों का रुझानों में आगे होना यह साबित करता है कि जनता ने व्यक्तिगत प्रदर्शन और विकास के एजेंडे को स्वीकारा है।
खंड 5: निर्णायक कारक 2: ‘जंगलराज’ बनाम ‘सुशासन’ की जीत
NDA ने इस पूरे चुनाव को दो विचारधाराओं—जंगलराज (RJD शासनकाल) और सुशासन (NDA शासनकाल)—के बीच की लड़ाई के रूप में पेश किया, और यह रणनीति सफल रही।
कानून व्यवस्था की प्राथमिकता: महिलाओं, अगड़ी जाति के मतदाताओं और व्यावसायिक वर्ग ने सुरक्षा और कानून-व्यवस्था को सबसे अधिक महत्व दिया।
मोदी का केंद्रीय समर्थन: प्रधानमंत्री मोदी की अपील और उनकी केंद्र सरकार की योजनाएँ (उज्ज्वला, आवास, DBT) ने नीतीश के राज्यव्यापी सुशासन के एजेंडे को मजबूत किया, जिससे ‘डबल इंजन’ का संदेश निर्णायक साबित हुआ।
विकास की राजनीति को नई दिशा: बीजेपी महासचिव अमित मालवीय ने सही कहा कि यह चुनाव परिणाम बिहार की जनता द्वारा विकास की राजनीति को दी गई नई दिशा का संकेत है।
खंड 6: महागठबंधन की हार के 5 अंदरूनी, घातक कारण
NDA की जीत के साथ-साथ, महागठबंधन की हार के पीछे 5 प्रमुख आंतरिक विफलताएँ थीं, जिन्होंने उसकी संभावनाओं को जड़ से खत्म कर दिया:
1. नेतृत्व में समन्वय का अभाव: सीटों के बँटवारे में अत्यधिक देरी हुई, जिससे जमीनी स्तर पर समन्वय बिगड़ गया। तेजस्वी यादव के चेहरे पर सभी दलों में पूरी सहमति नहीं बन पाई, जिसने गठबंधन को कमजोर दिखाया।
2. कांग्रेस की राजनीतिक अक्षमता: 60 से अधिक सीटों पर लड़कर केवल 4-5 सीटें जीतना, कांग्रेस की संगठनात्मक विफलता का प्रमाण है। कांग्रेस न तो अपने कोर वोट को बनाए रख पाई और न ही RJD के वोट को अपनी तरफ खींच पाई, जिससे वह राजनीतिक बोझ बन गई।
3. ‘फ्रेंडली फाइट’ और वोट का बँटवारा: कई सीटों पर महागठबंधन के घटक दलों (जैसे RJD बनाम कांग्रेस) के बीच आपसी संघर्ष हुआ, जिससे विपक्षी वोट विभाजित हो गए। इसका सीधा फायदा NDA उम्मीदवारों को मिला और यह हार के मार्जिन को बड़ा करने का प्रमुख कारण बना।
4. RJD की जातिवादी छवि का डर: RJD के टिकट वितरण में यादव उम्मीदवारों पर अधिक जोर दिए जाने से गैर-यादव अति-पिछड़े वर्गों और अगड़ी जातियों के बीच फिर से ‘जंगलराज’ की वापसी का डर पैदा हुआ। NDA ने सफलतापूर्वक इस भय का उपयोग अपने पक्ष में ध्रुवीकरण करने के लिए किया।
5. कमजोर संगठनात्मक ढाँचा और बूथ प्रबंधन: RJD की रैलियों में भले ही भीड़ जुटी, लेकिन वह वोटों को बूथ तक पहुँचाने में असफल रही। NDA का मजबूत बूथ प्रबंधन (पन्ना प्रमुख) और टाइट-माइक्रो प्लानिंग महागठबंधन के ढीले-ढाले संगठन पर भारी पड़ी।
खंड 7: भविष्य की राजनीति और चुनौतियाँ
NDA की 202 सीटों की महाविजय बिहार की राजनीति में कई दूरगामी परिणाम देगी:
नीतीश कुमार की भूमिका: नीतीश कुमार मुख्यमंत्री बने रहेंगे, लेकिन BJP गठबंधन में सबसे बड़े दल के रूप में उभरी है। इससे आने वाले समय में नीतिगत फैसलों और केंद्रीय नेतृत्व का प्रभाव बढ़ेगा।
BJP का बढ़ता वर्चस्व: BJP ने अपनी सीटों को 89 तक पहुँचाकर यह साबित कर दिया है कि उसका संगठन अब राज्य में सबसे मजबूत है। भविष्य में वह स्वाभाविक रूप से गठबंधन में बड़े भाई की भूमिका निभाएगी।
महागठबंधन के लिए अस्तित्व का संकट: महागठबंधन को अब केवल आत्मनिरीक्षण से आगे बढ़कर संरचनात्मक परिवर्तन करने होंगे। RJD को अपनी छवि बदलने, कांग्रेस को अपनी जमीनी ताकत मजबूत करने और तेजस्वी यादव को भीड़ खींचने से आगे बढ़कर संगठनात्मक कुशलता दिखाने की चुनौती होगी।
यह चुनाव परिणाम स्पष्ट करता है कि बिहार की जनता ने अराजकता को खारिज करते हुए विकास, स्थिरता और सुशासन के मॉडल पर अपना मुहर लगाया है।
