
- चिराग पासवान बिहार की राजनीति में एक मजबूत दावेदार के रूप में उभरे हैं।
- उनका ‘बिहार फर्स्ट, बिहारी फर्स्ट’ अभियान युवाओं को आकर्षित कर रहा है।
- 2025 के विधानसभा चुनाव में मुख्यमंत्री पद की रेस में उनकी दावेदारी पर विश्लेषण।
बिहार की राजनीति में इन दिनों एक युवा और महत्वाकांक्षी नेता का नाम लगातार सुर्खियां बटोर रहा है – चिराग पासवान। स्वर्गीय रामविलास पासवान के राजनीतिक वारिस के तौर पर उभरे चिराग ने अब खुद को ‘विरासत के नेता’ से कहीं बढ़कर एक गंभीर मुख्यमंत्री पद के दावेदार के रूप में स्थापित कर लिया है। 2025 के बिहार विधानसभा चुनाव नजदीक आते ही, राजनीतिक गलियारों में यह सवाल तेजी से घूम रहा है कि क्या चिराग पासवान राज्य के अगले मुख्यमंत्री बन सकते हैं? उनके व्यक्तित्व, राजनीतिक रणनीति और बदलती राजनीतिक परिस्थितियों का विश्लेषण यह समझने में मदद करता है कि उनका भविष्य क्या हो सकता है।

एक आधुनिक राजनीतिक चेहरा: युवा अपील और विकास का एजेंडा
चिराग पासवान एक शिक्षित, मीडिया-प्रेमी और हिंदी व अंग्रेजी दोनों में धाराप्रवाह बोलने वाले नेता हैं। उनका यह आधुनिक व्यक्तित्व उन्हें बिहार के पारंपरिक नेताओं से अलग खड़ा करता है। उनकी “बिहार फर्स्ट, बिहारी फर्स्ट” की पहल सिर्फ एक नारा नहीं, बल्कि बिहार की युवा आबादी को आकर्षित करने का एक महत्वपूर्ण प्रयास है। यह अभियान पारंपरिक जातिगत समीकरणों से ऊपर उठकर विकास और प्रगति पर ध्यान केंद्रित करता है। बिहार की 65% से अधिक आबादी 35 वर्ष से कम आयु की है, जो पुराने नेताओं से हताश है और बदलाव की तलाश में है। चिराग की तकनीक-प्रेमी छवि, दूरदर्शिता-प्रेरित बयानबाजी और संबंधित व्यक्तित्व इस युवा वर्ग के साथ गहरा तालमेल बिठाते हैं। उनका अभियान आधुनिक शासन, बुनियादी ढांचे, रोजगार और सम्मान पर केंद्रित है, जो युवाओं को सीधे प्रभावित करता है।
गठबंधन की राजनीति के रणनीतिकार: ‘हनुमान’ से ‘किंगमेकर’ तक
चिराग पासवान ने गठबंधन की राजनीति की गहरी समझ दिखाई है। 2020 के विधानसभा चुनावों में उनका जदयू के खिलाफ अकेले चुनाव लड़ने का फैसला, जबकि भाजपा के प्रति नरम रुख बनाए रखना, उनकी रणनीतिक दूरदर्शिता को दर्शाता है। इस कदम ने स्थापित समीकरणों को बाधित किया और जदयू को भारी नुकसान पहुंचाया, जिससे भाजपा राज्य में सबसे बड़ी सहयोगी बनकर उभरी। अब, एनडीए और जदयू दोनों के प्रति उनके बेबाक और स्पष्टवादी तेवर उन्हें एक स्वतंत्र शक्ति के रूप में स्थापित कर रहे हैं। वे केवल एक गठबंधन सहयोगी बनकर नहीं रहना चाहते, बल्कि बिहार की राजनीति में एक निर्णायक भूमिका निभाना चाहते हैं। उनकी यह मुखरता और अपनी शर्तों पर राजनीति करने की इच्छा उन्हें मुख्यमंत्री पद की दौड़ में एक मजबूत दावेदार बनाती है।
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मुख्यमंत्री पद की महत्वाकांक्षा और एनडीए पर प्रभाव
चिराग पासवान ने बिहार का शासन चलाने में निर्णायक भूमिका निभाने की अपनी तैयारी का संकेत खुलकर दिया है। उनकी यह मुखरता और मुख्यमंत्री बनने की महत्वाकांक्षा एनडीए के भीतर चिंता का कारण बन रही है। उनकी मुखरता से वोटों का बंटवारा हो सकता है, खासकर दलितों और युवा मतदाताओं के बीच, जो पारंपरिक रूप से उनके पिता रामविलास पासवान के समर्थक रहे हैं। इसके अलावा, ऐसी भी संभावनाएं हैं कि चिराग किसी तीसरे मोर्चे या यूपीए के साथ गठबंधन कर सकते हैं, जिससे चुनावी समीकरण पूरी तरह बदल सकते हैं। उनकी बढ़ती महत्वाकांक्षा और आक्रामक रणनीति गठबंधन के भीतर तनाव पैदा कर रही है।
चुनौतियाँ और आगे की राह
मुख्यमंत्री बनने की राह चिराग के लिए आसान नहीं है। उन्हें दलितों से परे अपने चुनावी आधार का विस्तार करना होगा, जमीनी स्तर पर संगठनात्मक ताकत का निर्माण करना होगा, सही गठबंधन बनाने होंगे, और बेरोजगारी व भ्रष्टाचार जैसे मुद्दों पर एक विश्वसनीय शासन दृष्टि प्रस्तुत करनी होगी। इन चुनौतियों का सामना करना और प्रभावी समाधान पेश करना उनकी सफलता के लिए महत्वपूर्ण होगा।
इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि चिराग पासवान मुख्यमंत्री पद हासिल कर पाते हैं या नहीं, उन्होंने पहले ही बिहार के राजनीतिक भविष्य में एक महत्वपूर्ण खिलाड़ी के रूप में अपनी जगह बना ली है। यदि वह गति बनाए रखते हैं और सही राजनीतिक साझेदारी बनाते हैं, तो वह संभावित रूप से बिहार के सबसे कम उम्र के मुख्यमंत्री बन सकते हैं, जिससे राज्य के राजनीतिक परिदृश्य में एक नया अध्याय जुड़ जाएगा।
