
अशोक कुमार
बिहार की राजनीति में कहा जाता है कि चुनाव मंदिर, मस्जिद या सड़क पर नहीं, बल्कि जाति के चौखट पर लड़ा जाता है। आगामी विधानसभा चुनाव के
जदयू उम्मीदवार जाति संतुलन
इस सूची का विश्लेषणात्मक अध्ययन यह साफ दर्शाता है कि जदयू ने अपने पारंपरिक वोट बैंक—अति पिछड़ा वर्ग (EBC) और दलितों—को न सिर्फ प्राथमिकता दी है, बल्कि उन्हें एक मजबूत प्रतिनिधित्व देकर विरोधी खेमे के लिए एक बड़ी चुनौती पेश कर दी है। यह टिकट वितरण महज एक चुनावी घोषणा नहीं है, बल्कि नीतीश कुमार के राजनीतिक जीवन की ‘सामाजिक न्याय 2.0’ रणनीति का खाका है।
कोर वोटबैंक पर सर्वाधिक भरोसा: 59 टिकट OBC-EBC के नाम
जदयू की 101 उम्मीदवारों की सूची में सबसे बड़ा फोकस पिछड़े वर्ग और अति पिछड़े वर्ग पर रहा है। आंकड़ों पर नजर डालें तो:
पिछड़ा वर्ग (OBC): 37 उम्मीदवार
अति पिछड़ा वर्ग (EBC): 22 उम्मीदवार
कुल OBC+EBC: 59 उम्मीदवार
101 सीटों में से 59 टिकट इन दोनों श्रेणियों को दिए गए हैं, जो कुल सीटों का लगभग 58% है। यह साफ संकेत है कि नीतीश कुमार ने अपने ‘कोर वोट बैंक’ को मजबूत करने की दिशा में निर्णायक कदम उठाया है। बिहार की राजनीति में 1990 के दशक में मंडल कमीशन की सिफारिशें लागू होने के बाद से ही पिछड़ा वर्ग राजनीति की धुरी रहा है। नीतीश कुमार ने इस समूह को दो स्पष्ट हिस्सों (OBC और EBC) में बांटकर EBC को विशेष पहचान और राजनीतिक ताकत दी है।
EBC वर्ग को 22 टिकट देना यह सुनिश्चित करता है कि उनका प्रतिनिधित्व सिर्फ कागजों पर नहीं, बल्कि विधानसभा में भी मजबूत हो। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि EBC वर्ग नीतीश कुमार का सबसे वफादार वोटबैंक है, और उन्हें सबसे ज्यादा टिकट देकर जदयू ने इस वर्ग में अपनी पकड़ और मजबूत करने का दांव चला है। यह कदम राज्य के ग्रामीण और हाशिए पर खड़े समाज के बीच एक शक्तिशाली संदेश भेजता है कि जदयू ही उनका सच्चा हितैषी है।
लव-कुश समीकरण की अचूक रणनीति: 25 प्रत्याशियों का चयन
जदयू की राजनीति में ‘लव-कुश’ (कुर्मी और कुशवाहा) समीकरण हमेशा से एक महत्वपूर्ण स्तंभ रहा है। इस उम्मीदवार सूची में भी इस समीकरण का खास ध्यान रखा गया है, जिसने जदयू को बिहार में एक मजबूत आधार प्रदान किया है।
कुशवाहा जाति: 13 प्रत्याशी
कुर्मी जाति: 12 प्रत्याशी
लव-कुश समीकरण से कुल: 25 प्रत्याशी
लव-कुश समीकरण के तहत 25 टिकट देकर नीतीश कुमार ने यह सुनिश्चित किया है कि पार्टी की मूल विचारधारा और कोर सपोर्ट बेस एकजुट रहे। कुर्मी जाति से स्वयं मुख्यमंत्री नीतीश कुमार आते हैं, जबकि कुशवाहा समाज का प्रतिनिधित्व बिहार की राजनीति में निर्णायक माना जाता है। इस समीकरण को सशक्त करके जदयू ने यह स्पष्ट कर दिया है कि वह अपने कोर सामाजिक गठबंधन को लेकर किसी भी तरह का समझौता नहीं करेगी। इन दोनों जातियों को एक साथ मजबूत प्रतिनिधित्व देना न केवल पार्टी के भीतर विश्वास बढ़ाता है, बल्कि यह भी दिखाता है कि जदयू का सामाजिक ताना-बाना कितना मजबूत है।
इसके अलावा, ओबीसी और ईबीसी की अन्य जातियों को भी पर्याप्त प्रतिनिधित्व दिया गया है। धानुक और यादव जाति को 8-8 टिकट, निषाद समाज से 3, और गंगौता, कामत, चंद्रवंशी, तेली व कलवार जैसी जातियों को 2-2 टिकट दिए गए हैं। यह छोटे-छोटे जातीय समूहों को साधने की रणनीति है, जिसके तहत विभिन्न उप-जातियों को प्रतिनिधित्व देकर एक व्यापक सामाजिक गठबंधन बनाने का प्रयास किया गया है। यह माइक्रो-लेवल का जाति गणित ही नीतीश कुमार की राजनीति की पहचान रहा है।
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दलित और महादलित कार्ड: 15 सीटों का विभाजन
अनुसूचित जाति (SC) के लिए आरक्षित सीटों के अलावा भी जदयू ने 15 दलित चेहरों को टिकट दिया है। इस बंटवारे में भी नीतीश कुमार की ‘महादलित‘ रणनीति की झलक साफ दिखाई देती है।
मुसहर-मांझी: 5 प्रत्याशी
रविदास: 5 प्रत्याशी
पासी: 2 प्रत्याशी
अन्य (पासवान, सरदार-बांसफोर, खरवार, धोबी): 3 प्रत्याशी
नीतीश कुमार ने मुसहर-मांझी और रविदास जैसी महादलित जातियों को समान और मजबूत प्रतिनिधित्व दिया है। यह रणनीति 2007 में महादलित आयोग के गठन के बाद से ही उनके सामाजिक न्याय के मॉडल का हिस्सा रही है। पासवान और अन्य प्रमुख दलित उप-जातियों को प्रतिनिधित्व देकर, जदयू ने दलित समाज के भीतर भी संतुलन बनाने की कोशिश की है, हालांकि मुसहर और रविदास को दिए गए 10 टिकट (कुल 15 में से) यह बताते हैं कि उनका प्राथमिक जोर उन समुदायों पर है, जिन्हें पारंपरिक रूप से राजनीतिक प्रतिनिधित्व कम मिला है। यह ‘सबसे निचले स्तर के लोगों को न्याय’ देने का संदेश है।
सवर्णों का संतुलन साधने का प्रयास: राजपूत और भूमिहार को प्राथमिकता
बिहार में NDA गठबंधन का हिस्सा होने के नाते, जदयू के लिए सवर्ण (सामान्य श्रेणी) वोटबैंक को भी संतुष्ट करना जरूरी था। 22 टिकट सवर्णों को दिए गए हैं, जिसमें राजपूत और भूमिहार जातियों का दबदबा है।
राजपूत: 10 प्रत्याशी
भूमिहार: 9 प्रत्याशी
ब्राह्मण: 2 प्रत्याशी
कायस्थ: 1 प्रत्याशी
राजपूत और भूमिहार को क्रमशः 10 और 9 सीटें देना यह दिखाता है कि जदयू गठबंधन की मजबूरी के साथ-साथ राज्य की राजनीतिक वास्तविकता को भी समझती है। बिहार में ये दोनों जातियाँ कई सीटों पर निर्णायक प्रभाव रखती हैं। ब्राह्मण और कायस्थ को कम टिकट देना, हालांकि आलोचना का विषय हो सकता है, लेकिन यह दिखाता है कि जदयू का प्राथमिक लक्ष्य ओबीसी और ईबीसी वोट बैंक है, जबकि सवर्ण वोट बैंक को गठबंधन के बड़े साथी (संभवतः भाजपा) के साथ मिलकर साधा जाएगा। जदयू ने अपने कोटे से इन प्रमुख सवर्ण जातियों को साधकर गठबंधन धर्म का पालन किया है, साथ ही यह भी सुनिश्चित किया है कि उनके अपने मूल सामाजिक समीकरण पर आंच न आए। यह एक कठिन राजनीतिक संतुलन है, जिसे नीतीश कुमार ने साधने का प्रयास किया है।
महिला और अल्पसंख्यक प्रतिनिधित्व: एक रणनीतिक चाल
जदयू ने 101 उम्मीदवारों की सूची में कुल 13 महिलाओं को टिकट दिया है। बिहार में महिला मतदाताओं की भागीदारी और उनका निर्णायक वोटिंग पैटर्न जगजाहिर है। नीतीश कुमार ने ‘विकास पुरुष’ की अपनी छवि को मजबूत करने के लिए महिलाओं के लिए कई योजनाएं चलाई हैं, और 13 महिलाओं को टिकट देकर उन्होंने महिला वोटरों को एक मजबूत संदेश दिया है कि उनकी पार्टी में उनका राजनीतिक प्रतिनिधित्व सुरक्षित है। खासकर ग्रामीण क्षेत्रों में महिला मतदाताओं का एक बड़ा हिस्सा नीतीश कुमार को अपना ‘चाचा’ (Uncle) या ‘भाई’ मानता है, और यह संख्या विपक्षी दलों के लिए चिंता का विषय है।
अल्पसंख्यक समाज को साधने में भी जदयू ने एक रणनीतिक विलंब दिखाया। पहली सूची में मुस्लिम उम्मीदवार न होने पर जब विपक्षी दलों ने शोर मचाया, तब दूसरी सूची में 4 मुस्लिम प्रत्याशियों को टिकट दिया गया।
कुल अल्पसंख्यक प्रत्याशी: 4 (जमा खान, चेतन आनंद, सबा जफर, मंजर आलम)
इनमें से 2 अति पिछड़ा वर्ग से और 2 सामान्य श्रेणी से हैं।
बिहार में मुस्लिम आबादी लगभग 17% है, और यह वोटबैंक राजद-कांग्रेस के ‘महागठबंधन‘ का पारंपरिक आधार रहा है। 4 मुस्लिम उम्मीदवारों को मैदान में उतारकर जदयू ने मुस्लिम वोटबैंक में सेंधमारी करने की कोशिश की है। यह जानते हुए कि वे पूरा वोट हासिल नहीं कर सकते, उनका लक्ष्य कम से कम कुछ मुस्लिम बहुल सीटों पर जीत सुनिश्चित करना और ‘धर्मनिरपेक्ष’ चेहरे की छवि को बनाए रखना है। चेतन आनंद, जो बाहुबली आनंद मोहन के बेटे हैं, और मंत्री जमा खान जैसे नाम राजनीतिक समीकरणों को जटिल बनाते हैं।
विवादित नाम और टिकट कटौती: पार्टी का कठोर फैसला
उम्मीदवारों की सूची में कुछ बड़े राजनीतिक बदलाव भी देखने को मिले हैं, जो नीतीश कुमार के कड़े फैसलों को दर्शाते हैं।
गोपाल मंडल का टिकट कटना: गोपालपुर सीट से बाहुबली गोपाल मंडल का टिकट काटकर बुलो मंडल को देना एक बड़ा फैसला है। यह दिखाता है कि पार्टी ‘दागी’ छवि वाले नेताओं से दूरी बनाने की कोशिश कर रही है, भले ही वे कितने भी प्रभावशाली क्यों न हों। यह फैसला पार्टी की छवि को साफ-सुथरा रखने की नीतीश कुमार की पुरानी नीति का हिस्सा है।
नए और पुराने चेहरों का मिश्रण: चैनपुर से मंत्री जमा खान, अमरपुर से मंत्री जयंत राज, और धमदाहा से मंत्री लेसी सिंह जैसे मौजूदा मंत्रियों को टिकट मिला है, जो उनके प्रदर्शन पर पार्टी के भरोसे को दर्शाता है।
कहलगांव और नबीनगर पर दांव: कहलगांव से कांग्रेस के दिग्गज स्वर्गीय सदानंद सिंह के बेटे शुभानंद मुकेश को मौका देना और नबीनगर से बाहुबली आनंद मोहन के बेटे चेतन आनंद को मैदान में उतारना, यह बताता है कि जदयू पारिवारिक विरासत और क्षेत्रीय दबदबे को भी तवज्जो दे रही है। ये उम्मीदवार क्षेत्रीय समीकरणों को बदलने की क्षमता रखते हैं।
चुनावी रण में जदयू की दिशा: सामाजिक न्याय से सत्ता का मार्ग
जदयू की यह 101 उम्मीदवारों की सूची किसी भी संशय को समाप्त करती है। नीतीश कुमार ने एक बार फिर सामाजिक न्याय को अपनी चुनावी रणनीति का केंद्र बिंदु बनाया है। OBC/EBC को सर्वाधिक टिकट देकर उन्होंने यह संदेश दिया है कि पिछड़े और अति पिछड़े वर्ग ही उनकी राजनीति की मुख्य धुरी हैं।
यह सूची महादलितों, महिलाओं और अल्पसंख्यक समाज को साधने का एक सुनियोजित प्रयास है। लव-कुश समीकरण को मजबूत बनाए रखना पार्टी की अपनी पहचान के लिए जरूरी है, जबकि सवर्णों को संतुलन साधने के लिए टिकट दिए गए हैं। यह विश्लेषण साफ करता है कि जदयू केवल अपने दम पर नहीं, बल्कि एक व्यापक सामाजिक गठबंधन के आधार पर चुनाव जीतना चाहती है।
विपक्षी दलों, खासकर राजद के लिए यह एक बड़ी चुनौती है, क्योंकि नीतीश कुमार ने उनके पारंपरिक ‘MY’ (मुस्लिम-यादव) समीकरण में EBC/दलित/महिला/अल्पसंख्यक का एक मजबूत विकल्प पेश कर दिया है। यह चुनावी रण अब केवल दो गठबंधनों के बीच नहीं, बल्कि सामाजिक प्रतिनिधित्व के उस गुणा-गणित के बीच होगा, जिसे नीतीश कुमार ने 101 सीटों के बंटवारे के जरिए बेहद प्रभावी ढंग से सामने रखा है। यह देखना दिलचस्प होगा कि यह ‘Mandal 2.0′ रणनीति बिहार चुनाव में कितनी कारगर सिद्ध होती है।
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