
- आईएनएस विक्रांत भारत का पहला स्वदेशी रूप से निर्मित विमानवाहक पोत (Aircraft Carrier) है, जो ‘आत्मनिर्भर भारत’ और ‘मेक इन इंडिया’ पहल की सबसे बड़ी सफलता का प्रतीक है।
- यह विशाल पोत न केवल भारतीय नौसेना की सामरिक शक्ति को कई गुना बढ़ाएगा, बल्कि भारत को चुनिंदा देशों की श्रेणी में खड़ा करता है, जो ऐसे जटिल युद्धपोतों का निर्माण कर सकते हैं।
- विक्रांत को बनाने में लगभग 76% स्वदेशी सामग्री का उपयोग किया गया है, जिसने देश के विनिर्माण उद्योग और तकनीकी क्षमता को एक नई दिशा दी है।
गौरवशाली इतिहास की पुनरावृत्ति: एक नया ‘विक्रांत’
‘विक्रांत’ नाम का भारतीय नौसेना के इतिहास में एक विशेष और गहरा महत्व है। पहला आईएनएस विक्रांत (R11), जो भारत का पहला विमानवाहक पोत था, ने 1971 के भारत-पाकिस्तान युद्ध में निर्णायक भूमिका निभाई थी। नए आईएनएस विक्रांत (IAC-1) का नामकरण उसी गौरवशाली विरासत को श्रद्धांजलि देने के लिए किया गया है, जिसका अर्थ है “साहसी” या “विजयी”।
इस नए विक्रांत का निर्माण कोचीन शिपयार्ड लिमिटेड (Cochin Shipyard Limited – CSL), कोच्चि में किया गया है। इसका निर्माण कार्य 2009 में शुरू हुआ था और 43,000 टन विस्थापन (Displacement) क्षमता वाले इस पोत को बनाने में भारी इंजीनियरिंग कौशल और स्वदेशी तकनीकी विशेषज्ञता का प्रदर्शन किया गया। इसका भारतीय नौसेना में कमीशन किया जाना देश की समुद्री सुरक्षा और रक्षा विनिर्माण क्षमता के लिए एक ऐतिहासिक उपलब्धि है। यह दर्शाता है कि भारत अब केवल रक्षा उपकरण खरीदता ही नहीं है, बल्कि विश्व स्तरीय युद्धपोतों का निर्माण भी करने में सक्षम है।
आईएनएस विक्रांत की बेजोड़ तकनीकी विशिष्टताएँ
आईएनएस विक्रांत को ‘फ्लोटिंग सिटी’ या तैरता हुआ शहर कहना अतिशयोक्ति नहीं होगी। इसकी विशालता और तकनीकी जटिलता इसे दुनिया के सबसे उन्नत विमानवाहक पोतों में से एक बनाती है।
विशालता और क्षमता (Immensity and Capacity)
लंबाई और चौड़ाई: इसकी लंबाई लगभग 262 मीटर (लगभग दो फुटबॉल मैदानों के बराबर) और चौड़ाई 62 मीटर है।
चालक दल: इस पर लगभग 1,600 नौसैनिकों का दल एक साथ रह सकता है, जिनके लिए 2,300 से अधिक कंपार्टमेंट और विशेष महिला अधिकारियों के केबिन बनाए गए हैं।
रेंज: यह एक बार ईंधन भरने पर 7,500 नॉटिकल मील (लगभग 14,000 किलोमीटर) तक की दूरी तय कर सकता है, जिससे यह हिंद महासागर क्षेत्र में लंबी दूरी के मिशनों के लिए आदर्श बन जाता है।
शक्ति स्रोत: यह चार शक्तिशाली गैस टर्बाइनों से चलता है, जो इसे 28 समुद्री मील (लगभग 52 किलोमीटर प्रति घंटा) से अधिक की अधिकतम गति प्रदान करते हैं। इसकी कुल बिजली उत्पादन क्षमता इतनी है कि यह एक छोटे शहर को रोशन कर सकती है।
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विमान संचालन प्रणाली (Aircraft Handling System)
विक्रांत ‘शॉर्ट टेक-ऑफ बट अरेस्टेड रिकवरी’ (STOBAR) प्रणाली का उपयोग करता है।
टेबल-टॉप डेक: इसमें विमानों को उड़ान भरने में मदद करने के लिए स्काई-जम्प (Sky-Jump) रैंप है।
अरेस्टिंग वायर्स: विमानों को वापस लैंड कराते समय उनकी गति को तुरंत धीमा करने के लिए इसमें विशेष ‘अरेस्टिंग वायर्स’ लगे हैं।
एयर विंग: विक्रांत के डेक पर 30 से अधिक विमानों को तैनात किया जा सकता है, जिसमें मिग-29के (MiG-29K) लड़ाकू विमान, कामोव (Kamov) हेलीकॉप्टर, एमएच-60आर रोमियो (MH-60R Romeo) बहुउद्देशीय हेलीकॉप्टर और एडवांस लाइट हेलीकॉप्टर (ALH) जैसे स्वदेशी रोटरी-विंग विमान शामिल होंगे। यह क्षमता इसे हिंद महासागर में वायु श्रेष्ठता (Air Superiority) सुनिश्चित करने में सक्षम बनाती है।
‘आत्मनिर्भरता’ और स्वदेशी योगदान का मॉडल
आईएनएस विक्रांत केवल एक युद्धपोत नहीं है, बल्कि यह भारत के रक्षा औद्योगिक आधार की शक्ति का प्रमाण है। इसे बनाने में लगभग 76% स्वदेशी सामग्री का उपयोग किया गया है।
स्टील निर्माण: विक्रांत के निर्माण के लिए विशेष युद्धपोत-ग्रेड स्टील (Warship Grade Steel) का निर्माण भारत के स्टील अथॉरिटी ऑफ इंडिया लिमिटेड (SAIL) और रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (DRDO) ने मिलकर किया था। इससे पहले भारत को ऐसे स्टील का आयात करना पड़ता था।
इंजीनियरिंग का योगदान: इसकी मशीनरी, पम्प, केबल, एयर कंडीशनिंग, और जटिल विद्युत प्रणालियों में 500 से अधिक स्वदेशी फर्में शामिल थीं, जिनमें से कई सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम (MSMEs) थीं। इसने भारत में रोजगार सृजन को भी बड़ा बढ़ावा दिया है।
जटिल प्रणालियाँ: पोत का जटिल गियरबॉक्स (Gearbox) और कई अन्य मशीनरी भी भारतीय कंपनियों द्वारा ही डिजाइन और निर्मित की गई हैं। यह भारत की एकीकरण और इंजीनियरिंग क्षमता को दर्शाता है।
भारतीय नौसेना के लिए रणनीतिक महत्व
आईएनएस विक्रांत का भारतीय नौसेना में शामिल होना भारत की समुद्री रणनीति के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है।
दोहरे विमानवाहक पोत (Twin Carrier Capability)
आईएनएस विक्रमादित्य (INS Vikramaditya) के साथ, विक्रांत के आने से भारत के पास अब दो ऑपरेशनल विमानवाहक पोत हो गए हैं। यह क्षमता नौसेना को दो अलग-अलग समुद्री क्षेत्रों—जैसे पश्चिमी तट पर अरब सागर और पूर्वी तट पर बंगाल की खाड़ी—में एक साथ ‘एयर डोमिनेंस’ बनाए रखने की अनुमति देती है। एक वाहक की मरम्मत या रखरखाव के दौरान भी, दूसरा वाहक पूरी तरह से ऑपरेशनल रह सकता है।
हिंद महासागर में शक्ति प्रक्षेपण (Power Projection in IOR)
विमानवाहक पोत शक्ति प्रक्षेपण (Power Projection) के प्राथमिक साधन होते हैं। विक्रांत हिंद महासागर क्षेत्र (IOR) में भारत की रणनीतिक पहुँच और प्रभाव को बढ़ाएगा। यह किसी भी संकट या मानवीय सहायता और आपदा राहत (HADR) मिशन के दौरान दूर-दराज के क्षेत्रों में तीव्र प्रतिक्रिया सुनिश्चित कर सकता है।
चीन को रणनीतिक जवाब
दक्षिण चीन सागर और हिंद महासागर में चीन की बढ़ती समुद्री गतिविधियों को देखते हुए, विक्रांत का बेड़े में शामिल होना भारत के लिए एक मजबूत निवारक (Deterrent) के रूप में कार्य करता है। यह भारत की ‘ब्लू-वॉटर नेवी’ (गहरे समुद्र में संचालन में सक्षम नौसेना) बनने की महत्वाकांक्षा को साकार करने में मदद करता है, जिससे वह एशिया में एक प्रमुख समुद्री शक्ति के रूप में अपनी स्थिति मजबूत कर सके।
आगे की चुनौतियाँ: विमान और संचालन की तैयारी
विक्रांत का निर्माण एक बड़ी सफलता है, लेकिन आगे कुछ महत्वपूर्ण चुनौतियाँ हैं।
एयर विंग का चयन: नौसेना को अभी भी विक्रांत के लिए स्थायी और स्वदेशी लड़ाकू विमानों का चयन करना है। मिग-29के के अलावा, नौसेना राफेल-एम (Rafale-M) या एफ/ए-18 सुपर हॉर्नेट (F/A-18 Super Hornet) जैसे विदेशी विमानों का मूल्यांकन कर रही है, साथ ही स्वदेशी ट्विन इंजन डेक बेस्ड फाइटर (TEDBF) के विकास पर भी काम चल रहा है।
पायलटों का प्रशिक्षण: ऐसे जटिल पोत से विमानों के संचालन के लिए विशेषज्ञ पायलटों के व्यापक प्रशिक्षण की आवश्यकता है।
रखरखाव और अपग्रेडेशन: स्वदेशी होने के कारण, इसके रखरखाव और मरम्मत की चुनौती स्वदेशी कंपनियों के हाथों में होगी, जिसके लिए एक मजबूत पारिस्थितिकी तंत्र बनाना होगा।
इन चुनौतियों के बावजूद, आईएनएस विक्रांत भारतीय नौसेना के इतिहास में एक नया अध्याय है। यह न केवल हमारी समुद्री सीमाओं की रक्षा करेगा, बल्कि दुनिया को भारत की तकनीकी कौशल और रक्षा आत्मनिर्भरता का संदेश भी देगा।
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