
- ऐतिहासिक हमला: PM मोदी ने कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष जवाहरलाल नेहरू पर 1937 में मुस्लिम लीग के तुष्टीकरण के दबाव में ‘वंदे मातरम’ के अंशों को अलग करने और इस तरह भारत के विभाजन के बीज बोने का गंभीर आरोप लगाया।
- चुनावी साजिश: वंदे मातरम संसद घमासान पर प्रियंका गांधी और गौरव गोगोई ने कहा कि इस बहस का एकमात्र उद्देश्य बंगाल चुनाव में राजनीतिक लाभ लेना और देश के मुख्य मुद्दों से ध्यान भटकाना है।
- अखिलेश यादव का तंज: सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने सत्ता पक्ष पर इतिहास पर एकाधिकार जमाने की कोशिश करने का आरोप लगाते हुए कहा कि ‘वंदे मातरम सिर्फ गाने के लिए नहीं, बल्कि निभाने के लिए भी होना चाहिए।’
नई दिल्ली, 9 दिसंबर: संसद का शीतकालीन सत्र सोमवार और मंगलवार को राष्ट्रगीत ‘वंदे मातरम’ की 150वीं वर्षगांठ पर आयोजित एक विशेष चर्चा के कारण एक तीखे राजनीतिक और वैचारिक घमासान में बदल गया। बहस की शुरुआत खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लोकसभा में की, जिसने देखते ही देखते इतिहास और राष्ट्रवाद की सियासत पर एक भयंकर हमले का रूप ले लिया।
प्रधानमंत्री के बाद गृह मंत्री अमित शाह ने भी राज्यसभा में मोर्चा संभाला, जबकि कांग्रेस नेता प्रियंका गांधी वाड्रा, गौरव गोगोई, मल्लिकार्जुन खड़गे और समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव ने सत्ता पक्ष पर जबरदस्त पलटवार किया।
PM मोदी ने नेहरू और कांग्रेस को घेरा
लोकसभा में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ‘वंदे मातरम’ को आजादी की लड़ाई का ‘महामंत्र’ बताते हुए कांग्रेस पर निशाना साधा। उन्होंने कहा कि 1937 में जब मुस्लिम लीग ने मोहम्मद अली जिन्ना के नेतृत्व में वंदे मातरम के विरोध में आवाज उठाई, तो तत्कालीन कांग्रेस नेतृत्व (नेहरू) ने वोट बैंक की राजनीति के दबाव में इसके महत्वपूर्ण छंदों को हटाकर समझौता कर लिया।
पीएम मोदी ने कहा, “वंदे मातरम के साथ हुए इस अन्याय और विश्वासघात ने ही देश के विभाजन की नींव रखी।” उन्होंने कहा कि दुर्भाग्य से, आज भी कांग्रेस की नीतियां वैसी ही हैं। इस दौरान उन्होंने कांग्रेस पर तंज कसते हुए कहा कि आज ‘आईएनसी चलते-चलते एमएमसी हो गया’ (मुस्लिम-लीगी माओवादी कांग्रेस)। राज्यसभा में गृह मंत्री अमित शाह ने भी इसी आरोप को दोहराया कि तुष्टीकरण की राजनीति यहीं से शुरू हुई।
विपक्ष का पलटवार: ध्यान भटकाने की चाल
प्रधानमंत्री के आरोपों पर विपक्षी दलों ने तीखी प्रतिक्रिया दी।
1. कांग्रेस का बचाव:
प्रियंका गांधी वाड्रा ने आरोप लगाया कि PM मोदी अपने राजनीतिक पूर्वजों को अंग्रेजों से लड़ने वाला बताने की कोशिश कर रहे हैं और यह बहस केवल बंगाल चुनाव को ध्यान में रखकर की जा रही है। उन्होंने कहा कि सरकार उन महापुरुषों पर नए आरोप लगाने का मौका तलाश रही है जिन्होंने देश के लिए बलिदान दिया।
गौरव गोगोई ने नेहरू का बचाव करते हुए कहा कि पीएम मोदी इतिहास को तोड़-मरोड़ रहे हैं। उन्होंने पूछा कि जब आपके राजनीतिक पूर्वज भारत छोड़ो आंदोलन से दूर थे, तो आप कांग्रेस के बलिदान पर सवाल कैसे उठा सकते हैं।
मल्लिकार्जुन खड़गे (LoP, राज्यसभा): खड़गे ने अमित शाह के भाषण के दौरान कड़ा विरोध दर्ज कराया और कहा कि यह बहस महंगाई, बेरोजगारी, इंडिगो संकट और चुनावी सुधारों जैसे देश के वास्तविक मुद्दों से ध्यान भटकाने के लिए की जा रही है। उन्होंने कहा कि कांग्रेस ने वंदे मातरम को आजादी की लड़ाई का नारा बनाया, जबकि आपके (BJP) का इतिहास इसके विपरीत रहा है।
2. अखिलेश यादव का तंज: समाजवादी पार्टी प्रमुख अखिलेश यादव ने सदन में पीएम मोदी के बयान पर तंज कसते हुए कहा, “जिस ‘वंदे मातरम’ ने पूरे देश को जोड़ा, आज ये दरारवादी लोग (सत्ता पक्ष) उसे तोड़ने की कोशिश कर रहे हैं। वंदे मातरम सिर्फ गाने के लिए नहीं, बल्कि निभाने के लिए भी होना चाहिए।” उन्होंने भाजपा पर उन महापुरुषों के नाम का उपयोग करने की कोशिश करने का भी आरोप लगाया जो उनके विचारों से सहमत नहीं थे।
3. TMC का रुख: टीएमसी सांसद ने पीएम मोदी के ‘बंकिम दा’ संबोधन पर आपत्ति जताई, जिसे मोदी ने तुरंत ‘बंकिम बाबू’ कहकर सम्मान दिया, लेकिन टीएमसी नेताओं ने आरोप लगाया कि पूरी बहस का लक्ष्य नेहरू पर हमला करना और बंगाली पहचान का राजनीतिकरण करना था।
कुल मिलाकर, संसद में यह चर्चा राष्ट्रीय एकता और गौरव के उत्सव से अधिक, पहचान की राजनीति और इतिहास के चयनात्मक उपयोग को लेकर एक कड़वे राजनीतिक टकराव का मंच बन गई है।
