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सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली-NCR में ग्रीन पटाखों को सशर्त दी मंजूरी

सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली-NCR में ग्रीन पटाखों को सशर्त दी मंजूरी
  • सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली-एनसीआर क्षेत्र में केवल ‘ग्रीन पटाखों’ (Green Firecrackers) को ही फोड़ने की सशर्त अनुमति दी है।
  • पटाखे फोड़ने के लिए दिवाली और अन्य त्योहारों पर केवल दो घंटे की समय सीमा तय की गई है, उल्लंघन पर सख़्त कार्रवाई होगी।
  • न्यायालय ने स्पष्ट किया कि पारंपरिक पटाखों पर प्रतिबंध जारी रहेगा और केवल लाइसेंस प्राप्त विक्रेता ही ग्रीन पटाखे बेच सकते हैं।

नई दिल्ली, 15 अक्टूबर: देश की सर्वोच्च अदालत, सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को एक महत्वपूर्ण फैसले में दिल्ली-राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र (NCR) में पटाखों पर पूर्ण प्रतिबंध को आंशिक रूप से हटाते हुए, ‘ग्रीन पटाखों’ के उपयोग की सशर्त अनुमति प्रदान कर दी है। यह फैसला दिवाली और आगामी त्योहारों से ठीक पहले आया है, जिससे पटाखा उद्योग और आम जनता को कुछ हद तक राहत मिली है। न्यायालय ने अपने आदेश में स्पष्ट किया कि यह अनुमति वायु प्रदूषण के गंभीर स्तर को ध्यान में रखते हुए पर्यावरण-अनुकूल विकल्पों को बढ़ावा देने के उद्देश्य से दी गई है।

न्यायाधीशों की पीठ ने अपने निर्देश में साफ किया कि पारंपरिक पटाखों का निर्माण, बिक्री और उपयोग पूरी तरह प्रतिबंधित रहेगा। केवल उन पटाखों को ही फोड़ने की अनुमति होगी जिन्हें वैज्ञानिक और औद्योगिक अनुसंधान परिषद (CSIR) के तहत राष्ट्रीय पर्यावरण इंजीनियरिंग अनुसंधान संस्थान (NEERI) द्वारा ‘ग्रीन पटाखे’ के रूप में प्रमाणित किया गया है। ये पटाखे पारंपरिक पटाखों की तुलना में 30-35% कम उत्सर्जन करते हैं और हानिकारक रसायन जैसे बेरियम, आर्सेनिक, लेड और मरकरी का उपयोग नहीं करते हैं।

त्योहारों पर सख्ती के साथ दो घंटे की समय सीमा

पटाखों के उपयोग के संबंध में सुप्रीम कोर्ट ने सख्त समय सीमा तय की है। दीपावली और अन्य त्योहारों जैसे गुरुपर्व पर पटाखे फोड़ने के लिए केवल दो घंटे का समय निर्धारित किया गया है। कोर्ट ने दिल्ली और संबंधित राज्य सरकारों को यह सुनिश्चित करने का निर्देश दिया है कि ये समय सीमाएँ (जैसे रात 8 बजे से 10 बजे तक) का सख्ती से पालन हो। इसके अलावा, क्रिसमस और नए साल की पूर्व संध्या पर भी पटाखे फोड़ने के लिए रात 11:55 से 12:30 बजे तक केवल 35 मिनट की छूट दी गई है।

न्यायालय ने निर्देश दिया है कि पटाखों की बिक्री केवल लाइसेंस प्राप्त विक्रेताओं द्वारा ही की जाएगी, और यह सुनिश्चित करना राज्य पुलिस और संबंधित अधिकारियों की ज़िम्मेदारी होगी कि प्रतिबंधित पटाखों की ऑनलाइन या ऑफलाइन बिक्री न हो।

दिल्ली सरकार और पुलिस को विशेष निर्देश

सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में दिल्ली सरकार और पुलिस प्रशासन को कुछ विशेष निर्देश दिए हैं:

जागरूकता अभियान: दिल्ली सरकार को आदेश दिया गया है कि वह ग्रीन पटाखों के उपयोग के संबंध में एक व्यापक जन-जागरूकता अभियान चलाए और लोगों को पारंपरिक पटाखों के दुष्प्रभावों के बारे में बताए।

उल्लंघन पर कार्रवाई: पुलिस को यह सुनिश्चित करने का निर्देश दिया गया है कि समय सीमा और केवल ग्रीन पटाखों के उपयोग के नियम का उल्लंघन करने वालों के ख़िलाफ़ भारतीय दंड संहिता (IPC) की प्रासंगिक धाराओं और पर्यावरण संरक्षण अधिनियम के तहत सख़्त कार्रवाई की जाए।

वायु गुणवत्ता की निगरानी: न्यायालय ने केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (CPCB) को भी निर्देश दिया है कि वह त्योहारों के दौरान वायु गुणवत्ता सूचकांक (AQI) की लगातार निगरानी करे और यदि प्रदूषण का स्तर ‘खराब’ या ‘गंभीर’ श्रेणी में जाता है, तो पटाखों पर पूर्ण प्रतिबंध लगाने पर विचार किया जा सकता है।

उद्योग जगत और पर्यावरणविदों की प्रतिक्रिया

कोर्ट के इस फैसले पर पटाखा उद्योग ने मिश्रित प्रतिक्रिया व्यक्त की है। उद्योग के प्रतिनिधियों ने ग्रीन पटाखों की अनुमति को थोड़ी राहत बताया है, लेकिन उन्होंने कहा कि ग्रीन पटाखों के उत्पादन और आपूर्ति के लिए पर्याप्त समय और स्पष्टता की आवश्यकता है।

दूसरी ओर, पर्यावरण कार्यकर्ताओं ने इस फैसले का स्वागत तो किया है, लेकिन उन्होंने चिंता व्यक्त की है कि केवल ग्रीन पटाखों की अनुमति देना पर्याप्त नहीं है, जब तक कि प्रवर्तन (Enforcement) सख्ती से न किया जाए। उनका कहना है कि बाजारों में अवैध और प्रतिबंधित पटाखों की बिक्री को रोकना सबसे बड़ी चुनौती होगी।

फैसले का महत्व: प्रदूषण से लड़ाई का नया अध्याय

यह फैसला इस बात को दर्शाता है कि न्यायपालिका प्रदूषण जैसी गंभीर पर्यावरणीय चुनौतियों से निपटने के लिए सशर्त और वैज्ञानिक समाधान खोजने के लिए प्रतिबद्ध है। ग्रीन पटाखों की अनुमति देकर, सुप्रीम कोर्ट ने नागरिकों को त्योहार मनाने का अधिकार दिया है, लेकिन साथ ही उन्हें पर्यावरण के प्रति अपनी जिम्मेदारी निभाने के लिए भी बाध्य किया है। यह कदम प्रदूषण के ख़िलाफ़ लड़ाई में एक महत्वपूर्ण अध्याय जोड़ता है, जहाँ स्वच्छ प्रौद्योगिकी और कड़े नियमों के माध्यम से समाधान तलाशा जा रहा है।

कुल मिलाकर, सुप्रीम कोर्ट का यह निर्णय दिल्ली-एनसीआर की गंभीर वायु गुणवत्ता के संदर्भ में एक संतुलित दृष्टिकोण प्रस्तुत करता है, जहाँ जन स्वास्थ्य और सांस्कृतिक परंपरा दोनों का ध्यान रखा गया है, पर जन स्वास्थ्य को प्राथमिकता दी गई है।

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