
- वैचारिक टकराव: संसद में ‘वंदे मातरम’ के गायन और सम्मान को लेकर भाजपा के सांसदों ने टीएमसी शासित पश्चिम बंगाल पर निशाना साधा, जिससे दोनों पार्टियों के बीच तीखी बहस हुई।
- सीधी चुनौती: भाजपा ने टीएमसी प्रमुख ममता बनर्जी को राज्य में ‘वंदे मातरम’ के प्रति कथित उदासीनता या विरोध पर अपना रुख स्पष्ट करने की खुली राजनीतिक चुनौती दी है।
- चुनावों से लिंक: यह पूरा विवाद वंदे मातरम बंगाल चुनाव के मद्देनजर खड़ा किया गया है, जिसका लक्ष्य भाजपा के राष्ट्रवादी एजेंडे को मजबूत करना और टीएमसी पर ‘तुष्टीकरण की राजनीति’ के आरोपों को फिर से स्थापित करना है।
नई दिल्ली, 8 दिसंबर: संसद के शीतकालीन सत्र के दौरान ‘वंदे मातरम’ के मुद्दे पर भारतीय जनता पार्टी (BJP) और तृणमूल कांग्रेस (TMC) के बीच एक तीखी वैचारिक बहस छिड़ गई है। यह बहस सामान्य संसदीय चर्चा से अधिक, आगामी पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनावों से पहले एक बड़े राजनीतिक और वैचारिक संघर्ष का संकेत है। भाजपा ने खुले तौर पर तृणमूल कांग्रेस प्रमुख और मुख्यमंत्री ममता बनर्जी को चुनौती देते हुए इस मुद्दे को राष्ट्रवादी पहचान के एक प्रमुख हथियार के रूप में उपयोग करने का प्रयास किया है।
इस घटनाक्रम ने यह स्पष्ट कर दिया है कि वंदे मातरम बंगाल चुनाव से पहले राज्य की राजनीति में ध्रुवीकरण और सांस्कृतिक राष्ट्रवाद का मुद्दा एक बार फिर केंद्र में रहने वाला है।
वंदे मातरम: राष्ट्रवादी पहचान का प्रतीक
भाजपा के सांसदों ने बहस के दौरान इस बात पर जोर दिया कि ‘वंदे मातरम’ केवल एक गीत नहीं, बल्कि भारतीय राष्ट्रवाद और बलिदान का प्रतीक है, जिसे पश्चिम बंगाल से ही राष्ट्र कवि बंकिम चंद्र चटर्जी ने दिया था। भाजपा का आरोप है कि टीएमसी सरकार वोट बैंक की राजनीति के तहत अल्पसंख्यक समुदाय के एक वर्ग को खुश करने के लिए जानबूझकर इस राष्ट्रीय गीत के सम्मान के प्रति उदासीनता दिखाती है।
संसद में भाजपा नेताओं ने मांग की कि ममता बनर्जी सरकार राज्य के सभी सरकारी और सहायता प्राप्त स्कूलों में ‘वंदे मातरम’ का गायन अनिवार्य करे। इस मांग को सीधे तौर पर टीएमसी को एक राजनीतिक जाल में फंसाने की रणनीति के रूप में देखा जा रहा है। यदि टीएमसी इस मांग को स्वीकार करती है, तो उसे अपने अल्पसंख्यक समर्थक आधार से प्रतिक्रिया का सामना करना पड़ सकता है, और यदि वह इनकार करती है, तो भाजपा उसे ‘राष्ट्र विरोधी’ करार देकर बंगाली राष्ट्रवाद पर चोट कर सकती है।
टीएमसी का पलटवार: संघीय ढांचे का अपमान
तृणमूल कांग्रेस के सांसदों ने इस बहस को केंद्र सरकार द्वारा राज्य के मामलों में अनावश्यक हस्तक्षेप और संघीय ढांचे के अपमान की कोशिश बताया। टीएमसी के नेताओं ने पलटवार करते हुए कहा कि भाजपा को बंगाली संस्कृति और राष्ट्रवाद का पाठ पढ़ाने की जरूरत नहीं है, जिसने स्वतंत्रता संग्राम में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।
टीएमसी ने आरोप लगाया कि भाजपा जानबूझकर सांप्रदायिक सद्भाव बिगाड़ने और वंदे मातरम बंगाल चुनाव से पहले सांप्रदायिक ध्रुवीकरण को बढ़ावा देने के लिए भावनात्मक मुद्दों का सहारा ले रही है। टीएमसी ने अपने नेताओं पर लगे ‘तुष्टीकरण’ के आरोपों को भी खारिज किया और कहा कि वे सभी समुदायों के साथ समान व्यवहार करते हैं। टीएमसी के नेताओं ने इस बात पर जोर दिया कि राष्ट्रगीत का सम्मान दिल से होना चाहिए, न कि राजनीतिक मजबूरी के कारण।
आगामी चुनावों पर संभावित असर
पश्चिम बंगाल में राजनीतिक पहचान और संस्कृति का मुद्दा हमेशा ही संवेदनशील रहा है। वंदे मातरम पर यह संसदीय बहस सीधे तौर पर राज्य के ध्रुवीकृत राजनीतिक परिदृश्य को प्रभावित करेगी।
भाजपा के लिए लाभ: भाजपा इस मुद्दे का उपयोग करके अपनी हिंदुत्व और राष्ट्रवादी विचारधारा को मजबूत करेगी, जिससे राज्य के बहुसंख्यक मतदाता को एकजुट करने में मदद मिलेगी।
टीएमसी की चुनौती: ममता बनर्जी के लिए यह एक मुश्किल स्थिति है, जहां उन्हें अपनी धर्मनिरपेक्ष छवि बनाए रखने और साथ ही बंगाली पहचान के रक्षक के रूप में अपनी स्थिति को भी मजबूत करना होगा।
यह घटनाक्रम दर्शाता है कि अगले कुछ महीनों में पश्चिम बंगाल की राजनीति भावनात्मक और वैचारिक युद्ध का मैदान बनी रहेगी, और ‘वंदे मातरम’ एक शक्तिशाली राजनीतिक उपकरण बन गया है।
