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छावला गैंगरेप के आरोपियों को सुप्रीम कोर्ट ने दी रिहाई .

9 फरवरी 2012 को दिल्ली के छावला इलाके में हुए बेहद दर्दनाक गैंगरेप के आरोपियों को निचली अदालत और हाई कोर्ट से फांसी की सजा मिलने के बाद भी सुप्रीम कोर्ट ने इस केस में पुलिस की कार्यवाही में लापरवाही बताते हुए इस केस के आरोपियों को रिहा कर दिया है .

क्या है पूरा मामला .
दिनांक 9 फरवरी 2012 को लगभग रात के 9:00 बजे पीड़िता अपने ऑफिस से घर वापस आ रही थी तभी तभी अचानक सुनसान सड़क पर एक लाल रंग की इंडिका कार में कुछ लड़कों ने उसे जबरन खींचने की कोशिश की पीड़िता के साथ तीन लड़कियां और चल रही थी उन्होंने सब ने अपनी अपनी तरीके से पीड़िता को बचाने की कोशिश की लेकिन फिर भी वे नाकाम रहे और आरोपियों ने पीड़िता को अगवा कर लिया
काफी देर हो जाने के बाद जब पीड़िता घर नहीं पहुंचे तो पीड़िता के पिता ने दिल्ली पुलिस में बेटी के गुमशुदा होने की एफ आई आर दर्ज करवाई लेकिन पिता के मुताबिक पुलिस वालों का कहना था कि उनके पास उस वक्त किसी प्रकार की गाड़ी नहीं है जिससे वह गुमशुदा की तलाश कर सकें
14 फरवरी को दिल्ली के हरियाणा के रेवाड़ी जिले में गुमशुदा पीड़िता की लाश बरामद की जाती है पेट का किला सिहावल में थी जो उसे देखकर पहचान पाना भी बहुत मुश्किल था पोस्टमार्टम रिपोर्ट होने के बाद पता चलता है कि अपराधियों ने पीड़िता के साथ कहीं बाहर बलात्कार किया है और पीड़िता को बेहद दर्दनाक मौत दी है पोस्टमार्टम रिपोर्ट के मुताबिक पीड़िता के प्राइवेट पार्ट में बीयर बोतल के टूटे हुए टुकड़े पाए जाते हैं
पीड़िता की लाश मिलने के बाद हरियाणा और दिल्ली पुलिस एक्शन में आ जाती है और इस केस में एक-एक करके तीन आरोपियों को गिरफ्तार करती है आरोपियों का डीएनए टेस्ट मिले हुए सबूतों के डीएनए से कराया जाता है और आरोपियों का रोग डीएनए की मैच होने से सामने आ जाता है
एनी सबूतों देखते हुए निचली अदालत तीनों आरोपियों को फांसी की सजा सुनाती है वही हाई कोर्ट भी सबूतों को मानते हुए इस सजा को बरकरार रखता है
सुप्रीम कोर्ट का फैसला .
जिस फांसी की सजा को निचली अदालत और हाईकोर्ट ने बरकरार रखा था उस सजा को सुप्रीम कोर्ट ने खारिज करते हुए आरोपियों को बरी कर दिया है सुप्रीम कोर्ट ने आरोपियों को रिहा करने का फैसला लेते हुए जो मुख्य कारण बताया वह पुलिस की कार्यवाही में की गई लापरवाही बताई है
सुप्रीम कोर्ट का कहना है इस केस में गवाहों का क्रॉस एग्जामिनेशन क्यों नहीं कराया गया साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा आखिर क्यों 11 दिनों तक जो भी फॉरेंसिक सैंपल इकट्ठे किए गए थे वह पुलिस थाने में ही पड़े रहे उन्हें जांच के लिए फॉरेंसिक लैब इतने दिनों तक क्यों नहीं भेजा गया .

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